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Showing posts from June, 2020

संजोग

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कितना सुंदर संजोग बना है आज! पितृदिन, योगदिन, संगीतदिन, और सबका प्यारा रविवार... पिता जो हमारे पालनकर्ता हैं, जो हमें योग्य मार्ग दिखाते हैं। जब उनकी उंगली पकड़कर हम पहला कदम रखते हैं, तभी से जीने को एक वजह मिल जाती है। रास्तों को एक दिशा मिल जाती है। और मंजिलों को छूने की चाह। उस नन्ही-सी जान को दुनिया देखने की उतसुकता और अपने पैरो से चलकर रास्ते में उत्साह और उमंग भरना, तो पिता ने ही सिखाया है। उस पिता को वंदन!  जैसे पिता के लिए उनके जीवन का महत्वूर्ण अंग वह नन्ही सी जान होती है, जिसके उज्ज्वल भविष्य की चिंता हर दम हर पल पिता को सताए रहती है। और हमें उन चिंताओं से दूर रखने के लिए पिता हमें योग शिक्षा देते है, जिससे कि हम स्वस्थ,निरोगी और एक सुंदर जीवन व्यतीत कर पाए। योग हम सभी को अपनाकर खुशहाली की और ले जाता है, वैसे ही हमे योग को अपना कर अपने जीवन के हरियाली की ओर अग्रसर होना चाहिए। हमें योग अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए। उन रोगों के अन्धकार में रहने से अच्छा है कि, योग करें और उजालों से अपने जीवन को प्रभावित रखे।  अब जब हम नियमित योग करने की ठान ही लेने वाल...

#Mandala

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And its Mandala art time...!  . . . Dancing on the rainy beats, Energizing with the cool breeze, His performance is never any mock, Therefore it's always called as Pea-cock...🦚❤ - Swar

Guidelines

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 Dear readers! I hope all are enjoying reading the posts.  Now it's time to upload some guidelines, rather set of rules which are necessary for ruling over the world... May these prove beneficial for you at each and every stage, while facing this competitive world... " Destruct when it gets struct , Recreate when it needs again to create. Retry when destiny gives you a try , Design to create your own sign ... Always compare own-self where I am , Do realise from where I came. Prepare yourself to shine like a star, Which leaves its impresions miles  far..." - Swar

बूंद

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वह पहली बारिश की बूंदे, वह गीली मिट्टी की खुशबू। साथ में पंछियों से गुफ्तगू, मौसम की ठंडी महक। वह पहली बारिश की बूंद, गिर पड़ी उस पत्ते पे। साथ उनका सुंदर सा, जान उनमें निराली सी। बातों से महकाए वो, सृष्टि में समाए वो।  कुदरत के वादों ने, बांधी थीं एक अलग ही डोर। लेकिन वो मुसाफिर भी क्या जाने, के आगे अलग ही होना है। मंजिलों से दूर वादों के पार, आख़िरकार हवाओं के सामने, माननी ही पड़ी आज हार। दुनियावालों ने तो कई बीज बोए, मिट्टी में पलकर पेड़ भी पले। जाने किसने उस पेड़ के खट्टे बेर चखाए, आज उन्होने उसे मीठे मानना सिखाए। फर्क था उनमें और हम में, आज वही महसूस होने लगा। बंधनों को हमने ही बांधा था, उलझनों को उन्होंने ही पलाया था। लेकिन कुदरत के सामने तो, आज हमें झुकना ही पड़ा। पहली सी उस बारिश की बूंद को , आज उलझनों को सुलझाना ही पड़ा। आज उलझनों को सुलझाना ही पड़ा।         - काव्यांश ------------------------------------------------- Vah pehli baarish ki bundey, Vah gili mitti ki khushboo. Saath m panchiyo se guftgu, Mausam ki thandi mehek. Vah pehli baarish ki boond, ...